''चैंपियन ऑफ इंडियाज पीजेंट्स'' कहे जाने वाले, भारत के पांचवें प्रधान मंत्री - श्री चौधरी चरण सिंह जी की जयंती के अवसर पर, आज पूरा भारत, किसान दिवस मना रहा है। भारत गांवों का देश है। हाथ में कुदाल, फावड़ा लेकर हर रोज, सूरज उगने से पहले, किसान निकल पड़ता है अपने काम पर। खेत की सरहद नापते, भरी दोपहरी में थके-हारे पांव थोड़ा ठहर जाते हैं आराम फरमाने के लिए। मिट्टी में मिट्टी होते, कब शाम ढल जाती है, पता नहीं चलता। हताशा, निराशा, के बावजूद, किसानी के वजूद में अक्सर ढूंढता है, अपनी आजीविका और देश के लिए रोटी। किसान भी, हम सब की तरह अपनी रोजी-रोटी के लिए कृषि से जुड़े हैं, लेकिन क्या होगा, अगर इस सेक्टर की बढ़ती दिक्कतों की वजह से, ये कौम, किसानी ही छोड़ दे। पैसा होने के बावजूद हम, रोटी के मोहताज हो सकते हैं। किसानों के सम्मान, को समर्पित 23 दिसंबर का दिन, दुनियाभर में मानवता का जश्न मनाने के लिए, ह्यूमन लाइट डे के तौर भी मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना है, और जब बेहतरी की बात हो रही है, तो अन्नदाता का कल्याण भी हमारा, दायित्व है। A-23 दिसंबर, 1902 में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव में जन्मे चौधरी चरण सिंह, एक गरीब किसान परिवार से संबंध रखते थे। 34 साल की उम्र में, चौधरी चरण सिंह जी को, फरवरी 1937 में बागपत विधान सभा के लिए चुना गया। वो, दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। 29 मई 1987 को किसानों के मसीहा कहे जाने वाले, चौधरी चरण सिंह जी निधन हो गया। और उन्हीं की याद में बनाए गए नई दिल्ली में किसान घाट स्मारक से शायद आप भी वाकिफ होंगे। किसानों के हित में उनका बहुत योगदान था, उन्होंने जमींदारी प्रथा को खत्म किया और कई भूमि सुधार एक्ट लाए। 1938 में उन्होंने विधानसभा में एक कृषि उत्पाद बाजार विधेयक भी पेश किया था, जिसका उद्देश्य व्यापारियों के खिलाफ किसानों के हितों की रक्षा करना था। चौधरी चरण सिंह जी, अपनी सत्यनिष्ठा, प्रतिबद्धता, अपने काम की नैतिकता से हर किसी के लिए एक रोल मॉडल रहे हैं।
भारत ही नहीं, दुनियाभर में किसान दिवस मनाया जाता है। घाना में दिसंबर के पहले शुक्रवार को, अमेरिका में 12 अक्टूबर को, जाम्बिया में यह अगस्त के पहले सोमवार को मनाया जाता है और पाकिस्तान 18 दिसंबर को किसान दिवस मनाता है। भारत के लगभग आधे ग्रामीण परिवारों की खेती में हिस्सेदारी, ना के बराबर है। साल 2019 के सिचुएशन असेसमेंट सर्वे के अनुसार, ग्रामीण भारत में 93.1 मिलियन कृषि परिवार हैं। India Meteorological Department की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 6 सालों में बाढ़ और ज्यादा बारिश के कारण देश का 33.9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र फसल के लायक नहीं रहा है और 35 मिलियन हेक्टेयर हमने सूखे के कारण खो दिया है। बहुत से कारण हैं, जिनकी वजह से आज लोग किसानी में भविष्य नहीं देख पा रहे। आज देश का अन्नदाता आत्महत्या के मुकाम पर पहुंच रहा है। शायद हम, उनकी जमीनी दिक्कतों को दूर करने में अब भी नाकामयाब हैं। एग्रीकल्चर सेक्टर और इंडस्ट्री आपस में एक-दूसरे पर निर्भर हैं। सरकार को भी इस cycle को समझने की कोशिश करनी चाहिए कि अगर किसान फाइनेंशियली कैपेबल नहीं हैं, तो वह नए प्रोडक्ट्स या नई टेक्नीक नहीं खरीद पाएगा, जैसे कि Tractor, Seeder and Fertilizer equipment। इससे न सिर्फ एग्रीकल्चर प्रोडक्शन कम होगी, बल्कि इंडस्ट्री को भी नुकसान होगा। क्योंकि इकोनॉमी की इस थ्योरी को हम जानते हैं कि एक का खर्च, दूसरे की इनकम है।
B-आज का दिन, एक खुशहाल, पीसफुल और पॉजिटिव दुनिया को डेडिकेटेड है। प्राचीन समय से लेकर आज तक, हम मानव के अस्तित्व की बहुत रोचक कहानियां सुनते आए हैं- जिनमें एक कॉमन फैक्टर- मानवता है। हर धार्मिक ग्रंथ से लेकर, हर धर्म के देवता तक, हर कोई एक मिलनसार दुनिया चाहता है। आज ह्यूमन लाइट डे, के अवसर पर क्यों ने अपने किसानों सहित, हर किसी को मानवता के आधार पर, उनके अधिकार, सम्मान और प्यार उन्हें लौटाएं। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि " अगर हम मिट्टी को खोदना और उसकी देखभाल करना भूल जाते हैं, तो यह अपने आप को भूल जाने के बराबर है।" कृषि प्रधान देश कहलाना ही काफी नहीं है, इतनी मेहनत के बावजूद, अगर फसल के समय उचित मूल्य हम कृषि के प्रधान - अन्नदाताओं को नहीं दे पाते हैं, तो हमारे सिस्टम की असफलता है। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी चिलचिलाती गर्मी, तूफानी बारिश और ठंड में काम करने वाले किसानों का आभारी हैं, जिनकी वजह से हर कोई खुशी से भोजन कर पाता है।